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भिक्षु की योग्यता??? बौद्ध मठ में सुवास नामक भिक्षु बहुत ही महत्वाकांक्षी था। वह चाहता था कि बुद्ध की तरह वह भी नव भिक्षुओं को दीक्षित करे और उसके शिष्य उसकी चरण वंदना करें। मगर वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी यह इच्छा कैसे पूरी करे। वह आम तौर पर दूसरे भिक्षुओं से कटा-कटा सा रहता था। कई बार जब दूसरे भिक्षु उसे कुछ कहते तो वह उनसे दूरी बनाने की कोशिश करता या ऐसा कुछ कहता जिससे उसकी श्रेष्ठता साबित हो। दूसरे भिक्षु इस कारण उससे नाराज रहते थे। एक दिन बुद्ध ने जब प्रवचन समाप्त किया और सभा स्थल खाली हो गया तो अवसर देख सुवास ऊंचे तख्त पर विराजमान बुद्ध के पास जा पहुंचा और कहने लगा-प्रभु मुझे भी आज्ञा प्रदान करें कि मैं भी नव भिक्षुओं को दीक्षित कर अपना शिष्य बना सकूं और आपकी तरह महात्मा कहलाऊं। यह सुनकर बुद्ध खड़े हो गए और बोले- जरा मुझे उठाकर ऊपर वाले तख्त तक पहुंचा दो। सुवास बोला- प्रभु, इतने नीचे से तो मैं आपको नहीं उठा पाऊंगा। इसके लिए तो मुझे आपके बराबर ऊंचा उठना पड़ेगा। बुद्ध मुस्कराए और बोले-बिल्कुल ठीक कहा तुमने। इसी प्रकार नव भिक्षुओं को दीक्षित करने के लिए तुम्हें मेरे समकक्ष होना पड़ेगा। जब तुम इतना तप कर लोगे तब किसी को भी दीक्षित करने के लिए तुम्हें मेरी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मगर इसके लिए प्रयास करना होगा। केवल इच्छा करने से कुछ नहीं होगा। सुवास को अपनी भूल का अहसास हो गया। उसने बुद्ध से क्षमा मांगी। उस दिन से उसका व्यवहार में विनम्रता आ गई। -सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]
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