- 805 Posts
- 46 Comments
नव गृह/नव रत्न!
रत्नों का चुनाव कैसे करें : अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं। एक साथ कौन-कौन से रत्न पहनने चाहिए, इस बारे में ज्योतिषियों की राय है कि, * माणिक्य के साथ- नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है। * मोती के साथ- हीरा, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है। * मूंगा के साथ- पन्ना, हीरा, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है। * पन्ना के साथ- मूंगा, मोती वर्जित है। * पुखराज के साथ- हीरा, नीलम, गोमेद वर्जित है। * हीरे के साथ- माणिक्य, मोती, मूंगा, पुखराज वर्जित है। * नीलम के साथ- माणिक्य, मोती, पुखराज वर्जित है। * गोमेद के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज वर्जित है। * लहसुनिया के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज, मोती वर्जित है। रत्नों से संभव है औषधीय उपचार हजारों वर्षों से वैद्य रत्नों की भस्म और हकीम रत्नों की षिष्टि प्रयोग में ला रहे हैं। माणिक्य भस्म शरीर मे उष्णता और जलन दूर करती है। यह रक्तवर्धक और वायुनाशक है। उदर शूल, चक्षु रोग और कोष्ठबद्धता में भी इसका प्रयोग होता है और इसकी भस्म नपुंसकता को नष्ट करती है। कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न रोगों में मोती बहुत लाभकारी होता है। मुक्ता भस्म से क्षयरोग, पुराना ज्वर, खांसी, श्वास-कष्ट, रक्तचाप, हृदयरोग में लाभ मिलता है। मूंगे को केवड़े में घिसकर गर्भवती के पेट पर लेप लगाने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है। मूंगे को गुलाब जल में बारीक पीसकर छाया में सुखाकर शहद के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट बनता है। खांसी, अग्निमांद्य, पांडुरोग की उत्कृष्ट औषधि है। पन्ना, गुलाब जल या केवड़े के जल में घोटकर उपयोग में आता है। यह मूत्र रोग, रक्त व्याधि और हृदय रोग में लाभदायक है। पन्ने की भस्म ठंडी मेदवर्धक है, भूख बढ़ाती है, दमा, मिचली, वमन, अजीर्ण, बवासीर, पांडु रोग में लाभदायक है। श्वेत पुखराज को गुलाबजल या केवड़े में 25 दिन तक घोटा जाए और जब यह काजल की तरह पिस जाए तो इसे छाया में सुखा लें। यह पीलिया, आमवात, खांसी, श्वास कष्ट, बवासीर आदि रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है। श्वेत पुखराज की भस्म विष और विषाक्त कीटाणुओं की क्रिया को नष्ट करती है। हीरे की भस्म से क्षयरोग, जलोदर, मधुमेह, भगंदर, रक्ताल्पता, सूजन आदि रोग दूर होते हैं। हीरे में वीर्य बढ़ाने की शक्ति है। पांडु, जलोदर, नपुंसकता रोगों में विशेष लाभकारी सिद्ध होती है। रसराज समुच्चय के अनुसार, हीरे में विशेष गुण यह है कि रोगी यदि जीवन की अंतिम सांस ले रहा हो, ऐसी अवस्था में हीरे की भस्म की एक खुराक से चैतन्यता आ जाती है।कुछ पुराणों का मत है कि दैत्यराज बलि का वध करने के लिए भगवान त्रिलोकीनाथ ने वामन-अवतार धारण किया और उसके गर्व को चूर किया। इस समय भगवान के चरण स्पर्श से दैत्यराज बलि का सारा शरीर रत्नों का बन गया, तब देवराज इंद्र में उस पर वज्र की चोट की, इस प्रकार टूट कर बिखरे हुए बलि के रत्नमय खंडों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल में धारण कर लिया और उसमें नवग्रह और बारह राशियों के प्रभुत्व का आधार करके पृथ्वी पर गिरा दिया। पृथ्वी पर गिराए गए इन खंडों से ही विभिन्न रत्नों की खानें पृथ्वी के गर्भ में बन गईं। रत्नों की उत्पत्ति : रत्नों की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य कथा भी ग्रंथों में आती है। देवता और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया तो 14 रत्न पदार्थ निकले। उसमें लक्ष्मी, उच्चैश्रवा, ऐरावत आदि के कौस्तुभ मणि को अपने कंठ में धारण कर लिया। इससे निकले अमृत को लेकर देव और दानवों में संघर्ष हुआ। अमृत का स्वर्ण कलश असुरराज लेकर भाग खड़े हुए। कहते हैं कि इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें जहां-जहां गिरीं वहां सूर्य की किरणों द्वारा सूखकर वे अमृतकण प्रकृति की रज में मिश्रित होकर विविध प्रकार के रत्नों में परिवर्तित हो गए!–सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]
Read Comments