Menu
blogid : 2824 postid : 736339

हिंसक हे मनुश्य?सुभाष बुड़ावन वाला

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
koi bhi ladki psand nhi aati!!!
  • 805 Posts
  • 46 Comments

जन्म्जाक़्त हिंसक हे मनुश्य??? डीएनए टेस्ट की मदद से यह बताया जा सकता है कि दुनिया के किन्हीं दो बंदों में खून की रिश्तेदारी कितनी नजदीकी या कितनी पुरानी है। ऐसे कई अध्ययनों के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि आज की दुनिया के कोने-कोने में बसे सभी मनुष्य- काले, गोरे, पीले या सांवले, सब के सब सांझे पुरखों की संतानें हैं। नगर-नगर, गांव-गांव जाकर और खून के सैंपल उठा कर डीएनए टैस्ट किये गये हैं। अभी तक एक भी मनुष्य नहीं मिला जो बाकी सब मनुष्यों का रिश्तेदार न हो, भले ही यह रिश्तेदारी पांच पुश्त पुरानी हो पांच हजार। वैज्ञानिकों ने एक महिला का अता-पता भी ढूंढ निकाला है जो हम सब मनुष्यों की पड़-पड़-नानी थी और जिसका खून हम सभी की रग़ों में दौड़ रहा है। आज से दो लाख साल पहले वह महिला पूर्वी अफ्रीका में रहती थी। कल तक मानव जाति के इतिहास की खोजबीन प्राचीन दस्तावेज़ों, इमारतों, कलाकृतियों, औजारों, कब्रों, हड्डियों, बोलियों आदि की मदद से हुआ करती थी। आज हमें एक और टूल मिल गया है। मनुष्य शरीरों में पाए जाने वाले डीएनए के परीक्षण से मानव जाति के हजारों-लाखों साल पुराने इतिहास में हम झांक पा रहे हैं। मानव जाति के आदिम पुरखे कहां रहते थे, कब और कैसेे वे वहां से निकल कर बाकी दुनिया में फैले और बसे, यह रोमांचक कहानी अब कल्पना का विषय नहीं रही। आज से 160 हजार साल पहले मानव जाति के आदिम पुरखे पूर्वी अफ्रीका में रहते थे। वे नदियों और झीलों के किनारे, झाड़ीदार जंगलों में बसे हुए थे। सर्दी, गर्मी, बारिश, आंधी और तूफानों को वे नंगे बदन झेलते थे। गिरे-पड़े फल बटोर कर, छोटे-मोटे जानवरों और मछलियों का शिकार कर पेट भरते थे। लाठी-डंडे और तेेज धार वाले पत्थर उनके औज़ार थे। हिंसक पशुओं से घिरे होने की वजह से जीवन असुरक्षित था। खासकर नन्हें बच्चों को बचाना बड़े जोखिम का काम था। लेकिन उनकी सामाजिकता ने उन्हें बहुत बल दिया। अनुमान है कि हमारे उन पुरखों की कुल जनसंख्या तब लगभग एक लाख थी। फिर आबादी बढ़ी तो वे नए-नए प्रदेशों को खोज कर वहां बस्तियां बसाने लगे। बाकी अफ्रीका, एशिया, आस्ट्रेलिया, यूरोप, और दो अमरीकी महाद्वीपों की निर्जन धरतियां हमारे उन पुरखों की मानो बाट जोहने लगीं। उनके फैलाव का खाका कुछ यूं रहा- [ जारी है ] 160 से 135 हजार साल पहले हमारे पुरखों के जनसमूह में से तीन मुख्य शाखाएं अफ्रीका के दक्षिण और पश्चिम में फैल कर बस गईं। एक केप ऑफ गुड होप तक पहुंच गई , दूसरी दक्षिण कांगो तक और तीसरी घाना और आइवरी कोस्ट तक। 135 से 115 हजार साल पहल हमारे उन साहसी पुरखों की एक शाखा नील नदी की चढ़ाई चढ़ते हुए मिस्र पहुंच गई और वहां से रेड सी को पार कर तुर्की तक जा बसी। 115000 से 90000 वर्ष पूर्व गर्म हवाएं चलीं। सहारा रेगिस्तान बन गया और रहने – बसने के काबिल नहीं रहा। मानव जाति की जो शाखा मिस्र और तुर्की तक बसी थी , वह नष्ट हो गई। आज उसका कोई नामलेवा नहीं बचा है। 90,000 से 85,000 साल पहले के अंतराल में एक ग्रुप मानव जाति के मूल निवास से उत्तर की तरफ जाकर इथियोपिया को आबाद करता हुआ यमन तक पहुंच गया और वहां से समुद्र तट के साथ – साथ दक्षिणी ईरान तक फैल गया। ये लोग नाविक थे और मछली उनका मुख्य आहार था। दक्षिणी ईरान से चलकर वे केवल दस हजार सालों में दक्षिणी सिंध , मुंबई , गोवा , कोचीन , लंका , चेन्नई , कोलकाता , सुमात्रा , जावा में बसते – बसाते बोर्नियो तक फैल गए। यमन से लेकर शंघाई तक कई हजार मील लंबे समुद्र तट पर जहां – जहां नदियों के डेल्टा थे , वहां – वहां मानव जाति ने डेरे डाल रखे थे। इस विशाल सभ्यता को हम सागरी सभ्यता नाम दे सकते हैं। आज से 74,000 वर्ष पूर्व सुमात्रा के तोबा पर्वत में एक भयंकर विस्फोट हुआ , जिससे धरती – आकाश में खलबली मच गई। विशाल भारत भूखंड पर छह साल तक सूरज दिखाई नहीं दिया। एक हजार साल कड़ाके की सर्दी पड़ी और पांच मीटर मोटी राख की परत धरती पर बिछ गई। जीवन नष्ट हो गया। सागरी सभ्यता दो टुकड़ों में बंट कर रह गई। 75000 से 65000 साल पहले के दौर में भारत के तटीय प्रदेश धीरे – धीरे फिर से आबाद होने लगे। लोगों का पहले की तरह आना – जाना और बसना फिर शुरू हो गया। बोर्नियो ग्रुप की एक शाखा मलेशिया से होती हुई भारत के उत्तर – पूर्व में बस गई और इसी की दूसरी शाखा ने आस्ट्रेलिया के पूर्वी – पश्चिमी तटों को आबाद कर दिया। 65000 से 52000 साल पहले पृथ्वी के तापमान में बदलाव आया। गर्मी बढ़ी। बर्फ पिघली। नदियों और समुद्रों में पानी चढ़ा। कई द्वीप डूब गयेे। आबादी उत्तर की ओर सरकने लगी। दक्षिणी ईरान में बसे लोगों में से कुछ तुर्की पहुंचे और वहां से उन्होंने यूरोप में प्रवेश किया और अगले सात हजार सालों में लगभग पूरे यूरोप में फैल गये। उधर यूरोप आबाद हो रहा था , इधर मध्य एशिया में मानव जाति की तीन – चार धाराओं का विशाल संगम बन रहा था। एक शाखा दक्षिणी ईरान से आकर यहां बसी। दूसरी सिंध नदी को पकड़ कर , पंजाब होते हुए और हिमालय को लांघ कर यहां बसी। तीसरी वियतनाम से चलकर और तिब्बत होते हुए यहां पहुंची। सभ्यताओं के इस महा जमावड़े में मनुष्यों ने एक दूसरे से बहुत कुछ सीखा – हुनर , कौशल , कलाएं और भाषाएं। 40000 से 25000 वर्ष पूर्व इस जमावड़े से कई शाखाएं फूटी , जिनमें तीन महत्वपूर्ण रहीं। एक ने उत्तरी यूरोप का रुख किया , दूसरी ने स्कैंडिेनेवियाई देशों का। तीसरी साइबेरिया और अलास्का होते हुए उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में प्रवेश कर गई दक्षिणी अमरीका में दाखिल हुई। अगले दस हजार सालों में उसने दक्षिण अमेरिका महाद्वीप को भी आबाद कर दिया। इन लोगों को हमने गलती से इंडियन नाम दे दिया है लेकिन यह एक वजह से सही भी है , क्योंकि इनके पुरखे कभी इंडिया में भी हुआ करते थे। आज से 10,000 साल पहले पूरी दुनिया मानव जाति के कदमों के नीचे थी , लेकिन उनके औज़ार अभी भी नुकीले पत्थर ही थे। उनका आहार अभी भी शिकार के साथ – साथ गिरे – पड़े फलों तक ही सीमित था। पहिये और धनुष – बाण का आविष्कार होना बाकी था। तांबे , लोहे आदि की खोज अभी नहीं हुई थी। पशुपालन और कृषि विज्ञान अंकुरित नहीं हो पाए थे। घोड़े की सवारी सुलभ नहीं हुई थी। मानव जाति एक क्रांतिकारी सभ्यता के द्वार पर खड़ी थी। लेकिन उस सभ्यता के विकास की कहानी इतिहास कहलाती है। हम केवल इतिहास से पहले के इतिहास की बात कर रह थे। जन्मते ही सिब्लिग यानी सगा शिशु भी अपने से बड़े स वातस्ल्य, स्नेह, प्यार, खिलोने और कपड़े आदि भी अधिकार ए मांग, क्या सिद्ध करता है? लोग किस मज़बूरी मे जन्म-स्थान मे पाकिस्तान बना छोड़ आये// गुजरात मे जन्मे जिन्ना से तो में हिन्दू-ब्राह्मण हो, उससे कहीं अच्छा मुसलमान सिद्ध हूंगा..परनु?? अच्छा हो कोई आज के मरने मारने का कारण बनी फिल्म के ही कारण खोजता? ज्वलंत है ?-प्र–सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh