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निर्णय!!! ओलिंपिक में नावों की रेस होने वाली थी। सभी प्रतिद्वंद्वी अपनी-अपनी जीत के लिए आतुर थे। नियत समय पर प्रतियोगिता शुरू हो गई। सभी एक-दूसरे से आगे बढ़ने के लिए दौड़ पड़े। अचानक एक प्रतियोगी की नाव अटक गई और उसकी जान जोखिम में पड़ गई। पर यह तो प्रतियोगिता थी। सभी प्रतियोगियों पर अपनी-अपनी जीत की धुन सवार थी। वे अपने साथी प्रतियोगी को मुसीबत में देख उसे दरकिनार कर आगे बढ़ते रहे। रेस देख रहे लोग भी समझ नहीं पा रहे थे कि उस तक मदद कैसे पहुंचाई जाए। तभी एक प्रतियोगी लॉरेंस लेमिएक्स भी वहां से गुजरा। वह नौका दौड़ में बहुत कुशल था। उसके जीतने की पूरी उम्मीद थी। लेकिन वह दर्दनाक दृश्य देखकर उसका दिल दहल गया। उसे किसी की जान या जीत, दोनों में से एक के पक्ष में निर्णय लेना था। एक सेकंड में उसने जीत को महत्व न देकर किसी की जान बचाने का फैसला किया। वह मुसीबत में फंसे प्रतियोगी को देखकर रुक गया। लॉरेंस लेमिएक्स प्रतियोगी के पास पहुंचा। कुछ देर तक अनेक प्रयासों के बाद वह प्रतियोगी की जान बचाने में कामयाब हो गया। सभी यह देखकर दंग रह गए। लॉरेंस नौका दौड़ तो नहीं जीत सका लेकिन उसने लाखों-करोड़ों लोगों का दिल जीत लिया। उसके बाद अनेक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने उसका सम्मान किया क्योंकि उसने केवल जीत की भावना को जीवित न रखते हुए पूरी मानवता की भावना को जीवित रखा था। लॉरेंस लेमिएक्स की ओलिंपिक में हुई यह हार उसकी ओलिंपिक से भी बड़ी जीत बन कर लोगों के सामने आई।अर्थाथ आज हमारे जीवन मे यही सब चल रहा है, हम सब एक अंधी रेस मे भाग रहे है ! आगे निकालने की होड़ मे हम सभी रिश्ते ख़त्म करते जा रहे है, सिर्फ़ और सिर्फ़ भौतिक सुखो की लालसा मे भाग रहे है !प्रस्तुति –सुभाष बुड़ावन वाला,27,सुभाष मार्ग,खाचरोद[म्प]धन्यवाद!
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