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अमरबेल -सुभाष बुड़ावन वाला

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
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अमरबेल –
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यह एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है तथा यह वृक्षों के ऊपर फैलती है , भूमि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता अतः आकाशबेल आदि नामों से भी पुकारी जाती है | अमरबेल एक परोपजीवी और पराश्रयी लता है , जो रज्जु [रस्सी ] की भांति बेर , साल , करौंदे आदि वृक्षों पर फ़ैली रहती है | इसमें से महीन सूत्र निकलकर वृक्ष की डालियों का रस चूसते रहते हैं , जिससे यह तो फलती- फूलती जाती है , परन्तु इसका आश्रयदाता धीरे – धीरे सूखकर समाप्त हो जाता है | आज हम अमरबेल के कुछ औषधीय गुणों की चर्चा कर रहे हैं —-

१-अमरबेल को तिल के तेल में या शीशम के तेल में पीसकर सर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ मज़बूत होती हैं | यह प्रयोग धैर्य पूर्वक लगातार पांच से छह सप्ताह करें |
२- लगभग ५० ग्राम अमरबेल को कूटकर १ लीटर पानी में पकाकर , बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं तथा बालों का झड़ना व रुसी की समस्या इत्यादि भी दूर होती हैं |
३- अमरबेल के १०-२० मिलीलीटर रस को जल के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मस्तिष्कगत तंत्रिका [Nervous System ] रोगों का निवारण होता है |
४- अमरबेल के १०मिली स्वरस में ५ ग्राम पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर खूब घोटकर नित्य प्रातः काल ही रोगी को पिला दें | तीन दिन में ही ख़ूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है |
५- अमरबेल को पीसकर थोड़ा गर्म कर लेप करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है तथा सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है । अमरबेल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से भी वेदना में लाभ होता है |
६- अमरबेल के २-४ ग्राम चूर्ण को या ताज़ी बेल को पीस कर थोड़ी सी सोंठ और थोड़ा सा घी मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भी भर जाता है |सुभाष बुड़ावन वाला18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]*

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