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किसी विद्वान ने कहा है कि आपकी उम्र सालों से नहीं, बल्कि इस बात से तय होती है कि जीवन के अंत में आपके कितने दोस्त हैं….। दोस्ती एक अपरिभाषित रिश्ता है, ठीक वैसे ही जैसे प्यार….। ये सब कुछ है और कुछ भी नहीं। कृष्ण-सुदामा की अनमोल दोस्ती के पौराणिक परिप्रेक्ष्य में हम दोस्ती को जानते और पहचानते हैं।
समय बदला है तो जाहिर है दोस्ती का स्वरूप भी बदला, लेकिन भावना की शुद्धता और तीव्रता में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। चूंकि विरासत से मिले रिश्तों से अलग दोस्ती का मामला खुद की रुचि और पसंद से जुड़ा है तो बहुत स्वाभाविक है कि दोस्ती के प्रति युवाओं में एक आकर्षण, एक खिंचाव और एक नाजुकी होती है।
स्कूल में साथ मिलकर शरारत करने और साथ ही उसकी सजा पाने से लेकर, कॉम्पीटिशन के दिनों में साथ पढ़ना और फिर साथ-साथ ही प्रतिस्पर्धा करना, किसी लड़की पर लाइन मारने में मदद करना या फिर अपने पसंदीदा लड़के के मोबाइल नंबर का जुगाड़ करना क्या ये सब बिना दोस्तों के संभव हो सकता है? जीवन के रण में पहुंच कर चाहे अलग-अलग रास्ते पर चल पड़े हों, लेकिन दोस्त तो आखिर दोस्त होता है।
कभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्तों के बीच के संवाद देखें, लगेगा कि कितना बेलौस रिश्ता है ये, कितना पारदर्शी और कितना करीबी….।
दोस्ती करें, फूलों से ताकि हमारी जीवन-बगिया महकती रहे।
2) दोस्ती करें, पंछियों से ताकि जिंदगी चहकती रहे।
3) दोस्ती करें, रंगों से ताकि हमारी दुनिया रंगीन हो जाए।
4) दोस्ती करें, कलम से ताकि सुंदर वाक्यों का सृजन होता रहे।
5) दोस्ती करें, पुस्तकों से ताकि शब्द-संसार में वृद्धि होती रहे।
6) दोस्ती करें, ईश्वर से ताकि मन को शांति मिले और संकट की घड़ी में वह हमारे काम आए।
7) दोस्ती करें, अपने आप से ताकि जीवन में कोई विश्वासघात ना कर सके।
8) दोस्ती करें, अपने माता-पिता से क्योंकि दुनिया में उनसे बढ़कर कोई शुभचिंतक नहीं।
9) दोस्ती करें, अपने गुरु से ताकि उनका मार्गदर्शन आपको भटकने ना दें।
सुभाष बुड़ावन वाला18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]*
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