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जिसे तैरना सिखाओ, वही डुबोने को तैयार खड़ा है…।।!-सुभाष बुड़ावन वाला

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
koi bhi ladki psand nhi aati!!!
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:1- बुलंदी की उडान पर हो तो, जरा सब्र
रखो ।
परिंदे बताते हैं कि, आसमान में ठिकाने नही होते
।।
2 :- चढ़ती थीं उस मज़ार पर चादरें बेशुमार,
लेकिन बाहर बैठा कोई फ़क़ीर सर्दी से मर
गया ।।
3 :- कितनी मासुम सी ख़्वाहिश थी इस नादांन
दिल की,
जो चाहता था कि.. शादी भी करूँ और ….ख़ुश
भी रहूँ ।।
4 :- छत टपकती है उसके कच्चे घर की,
वो किसान फिर भी बारिश की दुआ माँगता है ।।
5 :- तेरे डिब्बे
की वो दो रोटिया कही भी बिकती नहीं,
माँ …….होटल के खाने से आज भी भूख
मिटती नहीं ।।
6 :- इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर “ऐ
बेखबर”
शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के
हे….।।
7 :- सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढने
का हुनर,
सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है!


8 :- लिखना तो ये था कि खुश हूँ तेरे बगैर भी,
पर कलम से पहले आँसू कागज़ पर गिर गया ।।
9 :- “मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए,
वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुये ।।
10 :- खुदगर्जों की इस बस्ती में अहसान भी है
इक गुनाह,
जिसे तैरना सिखाओ, वही डुबोने को तैयार
खड़ा है…।।
-सुभाष बुड़ावन वाला18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]**

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