Menu
blogid : 2824 postid : 865974

स्त्री रत्न!सुभाष बुड़ावन वाला

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
koi bhi ladki psand nhi aati!!!
  • 805 Posts
  • 46 Comments

हम सदा से सुनते आ रहे हैं कि स्त्री अबला है। इसका क्या तात्पर्य है? दूसरी जो बात हम प्राचीन काल से सुनते आ रहे हैं वो यह – क्योंकि स्त्री अबला है, अतः उसे सदा एक रक्षक की ज़रूरत होती है। सदियों से समाज ने रक्षक की यह भूमिका पुरुष को सौंपी है। फिर भी, हर युग में ऐसी साहसी स्त्रियाँ रही हैं जो स्वयं पर थोपे गए बन्धनों को तोड़ कर बाहर आईं और क्रान्ति का प्रारम्भ हुआ। रानी पद्मिनी, हाडी रानी, मीराबाई तथा झांसी की रानी-इनमें से कोई भी स्त्री अबला नहीं थी। वे तो वीरता, साहस तथा पावित्र्य की मूर्ति थीं। ऐसे ही स्त्री रत्न अन्य देशों में भी हुए हैं; जैसे फ्लोरेंस नाइटिंगेल, जोन-ऑफ़-आर्क तथा हैरियट टबमैन।

वास्तव में, पुरुषों को चाहिए कि वो स्वयं को न तो स्त्री के रक्षक के स्थान पर रखे और न ही ताड़क बने। पुरुष को स्त्री के साथ मिल-जुल कर रहना चाहिए तथा स्त्री को समाज की मुख्यधारा में नेतृत्व की भूमिका हेतु उदारता तथा तत्परता सहित आने देना चाहिए।

बहुत से लोग प्रश्न करते हैं कि आखिर यह पुरुष का अहम् आया कहाँ से?वेदान्त के अनुसार मूल कारण ‘माया’ हो सकता है परन्तु एक और उद्गम भी हो सकता है। प्राचीन काल में, मानव वनों, गुफाओं अथवा पेड़ों पर घर बना कर रहता था। क्योंकि शारीरिक रूप से पुरुष स्त्री की बजाय अधिक बलवान होता है, अतः शिकार करने तथा वन्य-जीव-जंतुओं से परिवार की रक्षा करना उसका दायित्व होता था। स्त्रियाँ घर पर रह कर घर का काम-काज व बच्चों का दायित्व संभालती थी। क्योंकि पुरुष भोजन तथा वस्त्र हेतु जानवरों की खाल घर ले कर आता था, संभवतः इसलिए उसने यह सोच लिया कि स्त्री उस पर आजीविका के लिए आश्रित है, वो स्वामी एवं स्त्री दासी है। इस प्रकार, स्त्री ने भी पुरुष को रक्षक का स्थान दे दिया होगा। कदाचित यहाँ से अहम् की निर्मिती हुई।

स्त्री अबला नहीं है और ऐसा सोचना भी उचित नहीं है परन्तु उसमें स्वाभाविक रूप से जो करुणा, सहानुभूति है, उसका प्रायः गलत अर्थ लगाया जाता है-निर्बलता। यदि स्त्री अपनी शक्ति को खींच कर भीतर संजो ले तो कदाचित पुरुष से भी बढ़ कर हो सकती है। पुरुष वर्ग को चाहिए कि स्त्री की उसकी गुप्त शक्ति के बोध एवं स्वीकृति में सच्ची सहायता करे। यदि हम उस भीतरी शक्ति के साथ स्वयं को मिला दें तो यह विश्व स्वर्ग बन जाए। कहना आवश्यक नहीं कि प्रेम एवं करुणा जीवन के आवश्यक अंग बन जायेंगे।

अम्मा ने एक अफ्रीकन देश में युद्ध के विषय में एक घटना सुनी थी। इस युद्ध में असंख्य पुरुष मारे गए। यद्यपि स्त्रियों की 70% जनसंख्या थी, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे एकजुट हुईं। वैयक्तिक अथवा सामूहिक रूप से छोटे-मोटे व्यापार में लग गईं। वे अपने बच्चों तथा अनाथ बच्चों का भी लालन-पालन करने लगीं। शीघ्र ही स्त्रियों ने स्वयं को अद्भुत रूप से सशक्त पाया तथा उनकी स्थिति में मौलिक सुधार आया। इससे सिद्ध होता है कि चाहें तो स्त्रियाँ अपनी विनाश की स्थिति से ऊपर उठ कर एक गम्भीर शक्ति के रूप में उभर सकती हैं।

ऐसी ही घटनाओं के कारण, लोग इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि, “यदि कोई स्त्री राज्य करे तो अनेकों दंगों तथा युद्धों से बचा जा सकता है। आख़िरकार, एक स्त्री बहुत सोच-समझ कर ही अपने बच्चों को मरने-मारने के लिए युद्ध के मैदान में उतारेगी। एक माँ ही बच्चा खोने वाली दूसरी माँ की पीड़ा समझ सकती है। ”

यदि स्त्रियाँ एकजुट हो कर साथ खडी हो जाएँ तो समाज में बहुत से वांछित परिवर्तन ला सकती हैं। किन्तु पुरुष को भी उन्हें इस ओर प्रोत्साहित करना होगा। अम्मा का कहना है कि समाज तथा आगामी पीढ़ियों को विपदा से बचाने के लिए, स्त्रियों तथा पुरुषों को मिल कर आगे आना होगा। इससे समाज एवं विश्व का उत्थान होगा। हम सबको इस लक्ष्य की ओर कटिबद्ध होना होगा। -सुभाष बुड़ावन वाला.,1,वेदव्यास,रतलाम[मप्र]*।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh