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भवन में सबसे आवश्यक कक्ष पूजा घर है। ईशान कोण पूर्व एवं उत्तर से प्राप्त होने वाली उर्जा का क्षेत्र है। इस कोण के अधिपति । प्रातः कालीन सूर्य की किरणें सर्वप्रथम ईशान कोण पर पड़ती है।
इन किरणों में निहित अल्ट्रॉवायलेट किरणों में इतनी शक्ति होती है कि वे स्थान को कीटाणुमुक्त कर पवित्र बनाते हैं। पवित्र स्थान पर पूजा करने से व्यक्ति का ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित होता है जिससे शरीर में स्फूर्ति, शक्ति का संचार होता है साथ ही भाग्य बली होता है।
आग्नेय कोण में अग्नि के देवता के स्थित होने से भोजन को तैयार करने में सहायता मिलती है एवं भोजन स्वादिष्ट होता है। भोजन बनाते समय गृहणी का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिये इसका कारण यह है कि पूर्व दिशा से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा गृहणी को शक्ति प्रदान करती है।
ईशान कोण में रसोई नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह जल के क्षेत्र हैं। जल तथा अग्नि में परस्पर शत्रुता है। नैत्य कोण में रसोई बनाने से परस्पर शत्रुता पारिवारिक कष्ट एवं अग्नि से दुर्घटनाओं का भय तथा जन-धन की हानि होती है। दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं तथा ग्रह मंगल हैं। यम का स्वभाव आलस्य एवं निद्रा को उत्तन्न करता है।
सोने से पहले मनुष्य के शरीर से आलस्य एवं निद्रा की उत्पत्ति होने से मनुष्य को अच्छी नींद आती है। भरपूर नींद के बाद शरीर फिर से तरोताजा हो जाता है। इसीलिए परिवार के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
अतिथि गृह का वायव्य कोण में होना लाभप्रद है। इस दिशा के स्वामी वायु होते हैं तथा ग्रह चंद्रमा। वायु एक जगह नहीं रह सकते तथा चंद्रमा का प्रभाव मन पर पड़ता है।
अतः वायव्य कोण में अतिथि गृह होने पर अतिथि कुछ ही समय तक रहता है तथा पूर्व आदर-सत्कार पाकर लौट जाता है, जिससे परिवारिक मतभेद पैदा नहीं होते।-सुभाष बुड़ावन वाला.,1,वेदव्यास,रतलाम[मप्र]
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