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वैयाकरणी कैयट का स्वास्थ्य दिन पर दिन खराब हो रहा था। वे दिन भर आजीविका के लिए परिश्रम करते थे और फिर रात भर जागकर महाभाष्य पर टीका लिखते थे। इतने परिश्रम से स्वास्थ्य तो खराब होना ही था। उनकी पत्नी उनके गिरते स्वास्थ्य के कारण चिंतित रहने लगी थी। एक दिन जब पत्नी ने उनसे काम कम करने की जिद की तो उन्होंने कहा-बिना परिश्रम मेरा जीवन शून्य हो जाएगा। तुम्हारा पति होने के नाते मेरा फर्ज है कि मैं परिवार के लिए धनोपार्जन की जिम्मेदारी निभाऊं और दूसरी ओर ब्राह्मण होने के नाते मुझे समाज के लिए ज्ञान का दान भी करना है।
उनकी बात सुन पत्नी बोली—बाकी समाज के लिए आप जो कर रहे हैं, उसका महत्व परिवार से कहीं अधिक है। आप परिवार के लिए परिश्रम न करें, वह मैं कर लूंगी। कल से मैं अपनी कुटी के चारों ओर उगी कुशा की रस्सियां बनाकर बेचा करूंगी। आप पूरी एकाग्रता से अपनी ज्ञान साधना में लग जाएं।
पत्नी की ऐसी बात सुनकर कैयट की आंखों में आंसू आ गए। वे भावविह्वल होकर बोले-जिसकी जीवनसंगिनी ज्ञान का महत्व समझकर इतना सहयोग करने को तत्पर हो, ऐसे व्यक्ति की साधना भला क्यों न पूरी होगी।-सुभाष बुड़ावन वाला.,
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