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सुभाष चंद्र बोस एक दिन माता प्रभावती की गोद से उतरकर जमीन पर सो गए। मां ने कारण पूछा तो बालक सुभाष का उत्तर था- मां, आज गुरुजी कह रहे थे कि हमारे ऋषि-मुनि भूमि पर ही सोते थे और कठोर जीवन जीते थे। मैं भी ऋषि बनूंगा, सो कठोर जीवन का अभ्यास कर रहा हूं। मां और पुत्र की आवाज सुनकर सुभाष के पिता भी जाग गए। उन्होंने पुत्र को समझाया-बेटे, केवल जमीन पर सोकर ही तुम ऋषि नहीं बन सकोगे। ऋषि बनने के लिए तुम्हें ज्ञान का अर्जन करना होगा और बड़े होकर सेवा का व्रत-संकल्प भी लेना होगा। बड़े होकर जब भारत की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर उनके ब्रिटिश सरकार का अधिकारी बनने की बात आई तो उन्होंने कहा- मैंने अपने बचपन में ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया था, मैं अफसर नहीं, मातृभूमि का सेवक बनूंगा। उन्होंने पद ठुकरा दिया और देश की सेवा में लग गए”-सुभाष बुड़ावन वाला.
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