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हमारा मकसद है अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी संसाधनों का उचित इस्तेमाल करना।सुभाष बुड़ावन वाला.,-

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
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जरा सोचिए अपने इलाके की सफाई के बदले अगर आपको मुफ्त में इलाज मिले तो हुआ ना एक तीर से दो शिकार। इंडोनेशिया के 26 वर्षीय डॉक्टर के इस आइडिया ने पर्यावरण और स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई क्रांति ला दी है।
डॉक्टर गमाल अलबिनसईद का यह आइडिया इंडोनेशिया की दो बड़ी समस्याओं से निपटने में मददगार साबित हो रहा है। इंडोनेशिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो गरीबी के कारण स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। ऐसे लोगों के लिए अलबिनसईद का कार्यक्रम गार्बेज क्लीनिकल इंश्योरेंस जीसीआई मुहैया कराता है।
कचरे के बदले इंश्योरेंस : इस इंश्योरेंस को हासिल करने के लिए लोगों को रिसाइकिल करने योग्य कचरा क्लीनिक में जमा करवाना होता है। कचरे में आने वाली प्लास्टिक की बोतलों और कार्डबोर्ड को उन कंपनियों को बेच दिया जाता है जो इन्हें रिसाइकिल करके उत्पाद बनाती हैं। साथ ही अन्य उपयुक्त कचरे को उर्वरक और खाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, करीब 2 किलो प्लास्टिक के बदले 10,000 इंडोनेशियाई रुपया जितना इंश्योरेंस मिलता है। क्लीनिक के मुताबिक इससे व्यक्ति दो महीने तक क्लीनिक की मूल स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा सकता है।
इससे ना सिर्फ गरीबों तक इलाज की सुविधा पहुंच रही है बल्कि यह कचरे की समस्या से निपटने का भी अच्छा उपाय साबित हो रहा है। अलबिनसईद के मुताबिक, ‘हमने लोगों की कचरे को लेकर आदतों के बारे में सोच को बदला है।’ उन्होंने बताया कि लोग इन्श्योरेंस वाले इन कचरे के डिब्बों को अहमियत दे रहे हैं। अब लोग अपने कूड़े करकट के साथ ज्यादा जिम्मेदाराना रवैया दिखा रहे हैं।
समस्याएं दो, हल एक : भारत की ही तरह इंडोनेशिया में भी कचरे से निपटना बड़ी समस्या है। हर साल समुद्र के आसपास के इलाकों में पैदा होने वाला करीब 32 लाख टन कचरा समुद्र में पहुंचता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक यह दुनिया भर के महासागरों में जाने वाले कचरे का 10 फीसदी हिस्सा है।
अलबिनसईद कहते हैं कि उनका मकसद बेहद सरल है। घर में पैदा होने वाले कचरे से लोग इलाज के लिए पैसे जुटा सकते हैं। जीसीआई की सदस्य बनीं एक घरेलू महिला एनी पुरवंती के मुताबिक, ‘कचरे और स्वास्थ्य का यह कार्यक्रम बेहद मददगार है। मुझे ब्लडप्रेशर की समस्या है। मैं कचरा इकट्ठा करके इलाज की रकम चुकाती हूं। इस कार्यक्रम से मेरे स्वास्थ्य बजट पर फर्क पड़ा है।’
भविष्य की योजना : वर्ल्ड बैंक के मुताबिक इंडोनेशिया में 63 लाख लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं है। जीसीआई के पास उपलब्ध डाटा के मुताबिक कुल आबादी के 60 फीसदी लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा कर्मचारियों की कमी बड़ी समस्या है।
अलबिनसईद का माइक्रो हेल्थ इंश्योरेंस कार्यक्रम तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। छोटे से कैंपस से लेकर पूरे देश तक इसकी चर्चा है। वह इस कार्यक्रम को दुनिया भर में पहुंचाना चाहते हैं। जीसीआई के अब तक पांच क्लीनिक हैं और यहां 3500 से ज्यादा मरीजों का इलाज हो रहा है।
उनके काम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। 2014 में उन्होंने ब्रिटेन में प्रिंस चार्ल्स के हाथों सम्मान हासिल किया। वह कहते हैं, ‘हमारा मकसद है अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी संसाधनों का उचित इस्तेमाल करना।सुभाष बुड़ावन वाला.,-
जरा सोचिए अपने इलाके की सफाई के बदले अगर आपको मुफ्त में इलाज मिले तो हुआ ना एक तीर से दो शिकार। इंडोनेशिया के 26 वर्षीय डॉक्टर के इस आइडिया ने पर्यावरण और स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई क्रांति ला दी है।
डॉक्टर गमाल अलबिनसईद का यह आइडिया इंडोनेशिया की दो बड़ी समस्याओं से निपटने में मददगार साबित हो रहा है। इंडोनेशिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो गरीबी के कारण स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। ऐसे लोगों के लिए अलबिनसईद का कार्यक्रम गार्बेज क्लीनिकल इंश्योरेंस जीसीआई मुहैया कराता है।
कचरे के बदले इंश्योरेंस : इस इंश्योरेंस को हासिल करने के लिए लोगों को रिसाइकिल करने योग्य कचरा क्लीनिक में जमा करवाना होता है। कचरे में आने वाली प्लास्टिक की बोतलों और कार्डबोर्ड को उन कंपनियों को बेच दिया जाता है जो इन्हें रिसाइकिल करके उत्पाद बनाती हैं। साथ ही अन्य उपयुक्त कचरे को उर्वरक और खाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, करीब 2 किलो प्लास्टिक के बदले 10,000 इंडोनेशियाई रुपया जितना इंश्योरेंस मिलता है। क्लीनिक के मुताबिक इससे व्यक्ति दो महीने तक क्लीनिक की मूल स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा सकता है।
इससे ना सिर्फ गरीबों तक इलाज की सुविधा पहुंच रही है बल्कि यह कचरे की समस्या से निपटने का भी अच्छा उपाय साबित हो रहा है। अलबिनसईद के मुताबिक, ‘हमने लोगों की कचरे को लेकर आदतों के बारे में सोच को बदला है।’ उन्होंने बताया कि लोग इन्श्योरेंस वाले इन कचरे के डिब्बों को अहमियत दे रहे हैं। अब लोग अपने कूड़े करकट के साथ ज्यादा जिम्मेदाराना रवैया दिखा रहे हैं।
समस्याएं दो, हल एक : भारत की ही तरह इंडोनेशिया में भी कचरे से निपटना बड़ी समस्या है। हर साल समुद्र के आसपास के इलाकों में पैदा होने वाला करीब 32 लाख टन कचरा समुद्र में पहुंचता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक यह दुनिया भर के महासागरों में जाने वाले कचरे का 10 फीसदी हिस्सा है।
अलबिनसईद कहते हैं कि उनका मकसद बेहद सरल है। घर में पैदा होने वाले कचरे से लोग इलाज के लिए पैसे जुटा सकते हैं। जीसीआई की सदस्य बनीं एक घरेलू महिला एनी पुरवंती के मुताबिक, ‘कचरे और स्वास्थ्य का यह कार्यक्रम बेहद मददगार है। मुझे ब्लडप्रेशर की समस्या है। मैं कचरा इकट्ठा करके इलाज की रकम चुकाती हूं। इस कार्यक्रम से मेरे स्वास्थ्य बजट पर फर्क पड़ा है।’
भविष्य की योजना : वर्ल्ड बैंक के मुताबिक इंडोनेशिया में 63 लाख लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं है। जीसीआई के पास उपलब्ध डाटा के मुताबिक कुल आबादी के 60 फीसदी लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा कर्मचारियों की कमी बड़ी समस्या है।
अलबिनसईद का माइक्रो हेल्थ इंश्योरेंस कार्यक्रम तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। छोटे से कैंपस से लेकर पूरे देश तक इसकी चर्चा है। वह इस कार्यक्रम को दुनिया भर में पहुंचाना चाहते हैं। जीसीआई के अब तक पांच क्लीनिक हैं और यहां 3500 से ज्यादा मरीजों का इलाज हो रहा है।
उनके काम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। 2014 में उन्होंने ब्रिटेन में प्रिंस चार्ल्स के हाथों सम्मान हासिल किया। वह कहते हैं, ‘हमारा मकसद है अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी संसाधनों का उचित इस्तेमाल करना।सुभाष बुड़ावन वाला.,-

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