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क्या यूं ही बदनाम है फैट?”सभाष बुड़ावन वाला

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
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क्या यूं ही बदनाम है फैट?

सालों से सुनते आए हैं कि खाने में फैट की मात्रा पर ध्यान देना चाहिए. एक वैज्ञानिक रिसर्च फैट यानि वसा से जुड़े तमाम मिथक तोड़ रही है.

अमेरिका में 1977 से और ब्रिटेन में 1983 से ही आमतौर पर इस बात पर सर्वसहमति बनी हुई है कि पोषण के लिहाज से खाने में फैट की ज्यादा मात्रा नुकसानदायक होती है. अब यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट ऑफ स्कॉटलैंड यूडब्ल्यूएस के रिसर्चर ने इस धारणा पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि आखिर इस मान्यता का आधार क्या है. “ओपन हार्ट” नामके साइंस जर्नल में छपे उनके लेख में कहा गया है कि फैट या वसा के बारे में इन दावों का कोई ठोस सबूत नहीं रहा है.

इस रिसर्च में जोई हारकॉम्ब ने यूडब्ल्यूएस के रिसर्चरों और कैन्सास के सेंट ल्यूक्स मिड अमेरिका हार्ट इंस्टीट्यूट के साथ काम किया. उनका मानना है कि इस बात के प्रमाण नहीं हैं कि कोरोनरी हार्ट डिजीज और खाने में वसा की मात्रा का कोई सीधा संबंध हो. इस नई स्टडी में 1983 से पहले कराए गए छह न्यूट्रिशनल ट्रायलों से इकट्ठे हुए मेटा डाटा का विश्लेषण किया गया. इन ट्रायलों में पांच सालों तक 2,467 लोगों के डायट में किए गए बदलावों का ब्यौरा है. छह में से पांच समूहों में लोगों ने उन्हें खानपान में फैट की कुल प्रस्तावित मात्रा और सैचुरेटेड फैट की मात्रा की अनदेखी की थी. रिसर्चरों ने पाया कि इन सबमें उस एक समूह की तुलना में कोलेस्ट्रॉल के स्तर या फिर मृत्यु दर में कोई खास अंतर नहीं था.

खाने में 55 फीसदी स्टार्च और ज्यादा से ज्यादा 30 फीसदी फैट हो: यूएसडीए

1977 में एक अमेरिकी सीनेट कमेटी ने वैज्ञानिकों की दलील के आधार पर “डायटरी गोल्स फॉर दि यूनाइटेड स्टेट्स” के नाम से कुछ प्रस्ताव जारी किए थे. इन्हीं प्रस्तावों के आधार पर कई दशकों से देश में पोषण से जुड़ी सभी नीतियों पर निर्णय लिए जाते रहे हैं. छह साल बाद ब्रिटेन ने भी इन्हें स्वीकार कर लिया था और इसी कारण वहां भी दिन भर में ली जाने वाली कुल कैलोरी में कार्बोहाइड्रेट की 55-60 फीसदी मात्रा होना तय किया गया. हमारे खानपान के तीन तत्वों का कोरोनरी हार्ट डिजीज से संबंध पाया गया है, ये हैं मांस, फैट और खास तौर पर सैचुरेटेड फैट.

दशकों से चली आ रही इन मान्यताओं के बावजूद अमेरिकन हार्ट असोसिएशन एएचए ने फैट को लेकर सवाल उठाए हैं. हालांकि अभी भी एएचए ने आधिकारिक रूप से कुल दैनिक कैलोरीज में 30 फीसदी से ज्यादा फैट ना होने की सलाह को नकारा नहीं है. एएचए ने इस बात पर अधिक जोर दिया है कि कोरोनरी डिजीज और अचानक होने वाली कार्डिएक मौतों के लिए सैचुरेटेड फैट ज्यादा जिम्मेदार है.

हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों की सेहत और शरीर के कुल वजन का ध्यान रखने की बात तो कही गई है, लेकिन खाने में कुल फैट की मात्रा की नहीं. रिपोर्ट में लिखा है, “खाने से मिलने वाली कैलोरी को ऊर्जा की दैनिक जरूरत के हिसाब से होना चाहिए. ज्यादा कैलोरी और कम पोषण वाली चीजों से बचना चाहिए, जैसे कि ज्यादा शुगर वाली चीजें. इसी तरह ज्यादा सैचुरेटेड फैटी एसिड और कोलेस्ट्राल से भी बचना चाहिए. अनाजों और अनसैचुरेटेड फैटी एसिड वाली चीजों की जगह सब्जियां, मछली, दालें और मेवे लिये जा सकते हैं.”

हारकॉम्ब की इस नई स्टडी को काफी कड़ी आलोचना भी झेलनी पड़ रही है. एक प्रतिष्ठित ब्रिटिश पोषण विशेषज्ञ क्रिस्टीन विलियम्स कहती हैं कि स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियों को गलत बताने से पहले “अत्यधिक सावधानी” बरतनी चाहिए. रेडिंग यूनिवर्सिटी में मानव पोषण की प्रफेसर विलियम्स ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए अपने वक्तवय में लिखा है “ये दावा भ्रामक और खतरनाक हो सकता है कि भोजन में फैट को लेकर 1970 और 80 के दशक में जारी किए गए दिशानिर्देशों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था.by-“सभाष बुड़ावन वाला.

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